सीनियर सिटीजन को लेकर कई तरीके के मामले सामने आते रहते है जोकि समाज की असंवेदनशीलता को प्रदर्शित करते है। काफी बार बुजुर्जो को उनके अपने ही परेशान करते है और इनमे सर्वाधिक न्यूज उनके बेटे-बहु के बुरे बर्ताव की आ रही है। किंतु दिल्ली उच्च न्यायालय ने ऐसे ही क्रूर बेटे-बहुत को सबक सिखाने का काम किया है।
दिल्ली हाईकोर्ट के एक निर्णय को हर एक बेटे-बहु और पोता-पोती को जान लेना चाहिए। जानकारी न होने पर ऐसी हरकत करने पर दूसरे लोगो को भी घर खाली कर देना होगा जैसे कि 80 साल की महिला के बेटे, बहु और पोते-पोतियों को घर खाली करने के आदेश मिले है। ये सभी उस घर में इकट्ठे रहते थे।
ग्रहक्लेश से सीनियर सिटीजन परेशान
दिल्ली हाईकोर्ट के जज संजीव नरूला कहते है कि ये केस बार-बार हो रहे सामाजिक मामले को प्रकाश में लता है। दंपत्ति के बीच का क्लेश उनकी जिंदगी में बाधा लाने के साथ ही घर के सीनियर सिटीजन पर भी असर डालता है। इस केस में याची को उसकी जिंदगी के नाजुक फेज में निरंतर परिवार के संघर्ष की वजह से गैर जरूरी दिक्कतों को झेलना पड़ा है। ये पोजिशन परिवार के विवाद में सीनियर सिटीजन के कल्याण पर संबोधन की जरूरत को दिखाती है।
टेंशन में गुजर रहा है जीवन
याची ने माता-पिता और सीनियर सिटीजन के गुजारे-भत्ते और कल्याण अधिनियम का हवाला देकर कहा है कि वो प्रॉपर्टी की इकलौती और रजिस्टर्ड स्वामी है। उन्होंने न बेटे और न ही बहु ने उसे या उसके पति को कोई देखरेख दे रखी है। वो दुखी है कि बेटे-बहु में हो रहा आपसी कलेश निरंतर दिक्कत और टेंशन का सोर्स रहा जोकि “स्लो डेथ” के जैसा था।
कोर्ट ने बेटे-बहू को हटाने की वजह बताई
बीते समय में अपने आदेश में हाईकोर्ट का कहना है कि बहु के रहने का हक कोई अपरिहार्य हक नही होता है और इस पर सीनियर सिटीजन अधिनिया के अंतर्गत सीनियर सिटीजन को मिल रही सेफ्टी सहित चिंतन करने की जरूरत है। कोर्ट ने याची के दैनिक जिंदगी पर चिंता जाहिर की जोकि उपेक्षा, हेल्थ रिस्क और मानसिक दिक्कत से घिरा था।
हितों का संतुलन लाकर कोर्ट ने पुत्र को अपनी पत्नी को वैकल्पिक आवास की सुरक्षा में सहायता देने को 25 हजार रुपए देने के आदेश दिए। कोर्ट के आदेशानुसार, एक बार पैसे की मदद की शुरुआत होने पर प्रतिवादी नंबर 3 से 6 (बेटा, बहु और 2 बच्चे) विषयगत प्रॉपर्टी को खाली करेंगे और 2 माह में ही याची को खाली कब्जा दे देंगे।