हिमाचल प्रदेश में सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व वाली कांग्रेसी सरकार बड़े आर्थिक संकटों का सामना कर रही है। राज्य में आर्थिक दशा को बनाए रखने में सरकार को ऋण लेना पड़ रहा है। बीते दिनों ही सरकार के तरफ से 700 करोड़ रुपए के लोन का नोटिस जारी हुआ है। इसके बाद बुधवार में लोन की राशि भी सरकार को मिल चुकी है।
अक्टूबर महीने के लिए 2 हजार करोड़ चाहिए
यूं तो सरकार को केंद्र स्करर से केंद्रीय करो में उनका 740 करोड़ रुपए का हिस्सा मिल चुका है किंतु यह सरकार की चिंता नहीं मिटा पाया है। इसकी वजह है कि सरकार को अक्टूबर माह के से कर्मियो की सैलरी को 1,200 करोड़ रुपए और पेंशनभोगियों को 800 करोड़ रुपए चाहिए होंगे। इस हिसाब से प्रदेश सरकार को पहली तारीख के लिए 2 हजार करोड़ रुपए का इंतजाम करना होगा। अगर अक्टूबर मैंने की पहली तारीख को कर्मियो को सैलरी न मिल पाई तो यह तारीख फिर से 5 अक्टूबर में शिफ्ट हो जाएगी।
ऐसे ही पेंशन की तारीख भी 1 की जगह पर 10 को शिफ्ट हो सकती है। इस प्रकार से सरकार को पेनसिंभोगियो के लिए पेंशन का इंतजाम भी करना है। अब प्रदेश सरकार सोच रही है कि किसी प्रकार से सैलरी और पेंशन को पहली तारीख में दे दिया जाए। विधानसभा के मानसून सत्र में मुख्यमंत्री सुक्खू का कहना था कि प्रदेश सरकार की कोशिश होगी कि पहली तारीख के सैलरी-पेंशन को दिया जा सके किंतु खजाने की स्थित को देखने पर लग रहा है कि शायद ऐसा ही हो।
हिमाचल प्रदेश की वित्तीय दशा
हिमाचल के इस वित्त वर्ष में दिसंबर 2024 तक प्रदेश सरकार के लिए लोन की सीमा 6317 करोड़ रुपए रखी थी। इसमें से भी प्रदेश सरकार ने 700 करोड़ सहित कुल 4,700 करोड़ रुपए का ऋण ले चुकी है। इसी रकम से सरकार को दिसंबर तक के खर्च को पूरा करना पड़ेगा। प्रदेश सरकार को केंद्र से 5 तारीख में रेवेन्यू डेफिसिट ग्रांट के 520 करोड़ रुपए मिल जाते है और 10 तारीख के आसपास केंद्रीय केंद्रीय टैक्स में भागीदारी से 740 करोड़ रुपए मिल जाते है। इन पैसों को मिलने पर कर्मियो की सैलरी का इंतजाम हो जाएगा।
मुख्यमंत्री ने सदन में ब्योरा दिया
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की तरफ से विधानसभा के मानसून सत्र में प्रदेश के वित्तीय संकट पर बीजेपी पर हमला किया गया था। उनके मुताबिक, बीजेपी के सत्ता में होने पर प्रदेश 1115 करोड़ रुपए रिवेन्यू सरप्लस में था। इसके बावजूद जयराम सरकार ने महंगाई भत्ता डेफर किया। पुरानी सरकार की तरफ से IR (अंतरिम राहत) की पेमेंट हो जाती। सिक्खू के अनुसार, पुरानी सरकार के दौर में आखिरी वर्ष में राजकोष का घाटा 6,336 करोड़ रुपए रहा था।