इलाहाबाद हाईकोर्ट की तरफ से अहम फैसला आया है जिसमे कर्मचारियों के विरुद्ध विभाग की जांच नहीं करने की बात कही है। कोर्ट की तरफ से इस बात में यूपी राज्य भंडारण निगम के रेगुलेशन का हवाला देकर कहा गया है कि जिस समय पर एक कर्मी रिटायर होता है तो वो उस विभाग का हिस्सा नहीं रहता है। तब उन पर विभागीय एक्शन कैसे ले सकते है?
फतेहपुर केस पर हाईकोर्ट का आदेश
हाईकोर्ट का ये फैसला फतेहपुर के राज्य भंडारण निगम के एक रिटायर कर्मी सुंदरलाल की पिटीशन पर सुनवाई के दौरान आया था। अदालत की तरफ से इस केस में राज्य भंडारण निगम के मैनेजिंग डायरेक्टर की तरफ से 27 लाख रुपए को वसूलने का आदेश कैंसिल किया गया है।
याची के वकील के तर्क
याची सुंदरलाल के अधिवक्ता आशुतोष त्रिपाठी का कोर्ट के सामने दलील थी कि विभागीय जांच में मुवक्किल को उसकी सफाई देने का अवसर नही मिला है। वे कहते है कि जांच के समय पर कानूनी प्रोसेस को ठीक से नहीं लागू किया है। ठीक से सुनवाई किए बगैर ही एक पक्षीय जांच रिपोर्ट के अनुसार वसूली के आदेश दे दिए है।
राज्य भंडारण निगम का तर्क
राज्य भंडारण निगम के सीनियर वकील ओपी सिंह का तर्क था कि विभाग की जांच को फिर से करने को विभाग को एक और अवसर मिले। चूंकि जांच का काम ऐसी के रिटायरमेंट के पूर्व आरंभ हुआ था। किंतु हाईकोर्ट इस दलील को न मानते हुए कहता है कि रिटायरमेंट होने पर याची वर्तमान में निगम का कर्मी नही है। इस कारण से उस पर विभागीय जांच किस प्रकार से हो सकती है?
कोर्ट ने वसूली का आदेश कैंसिल किया
हाईकोर्ट साफतौर पर कह चुका है कि जिस समय पर एक कर्मचारी रिटायर होता है तो उसके विरुद्ध विभागीय जांच वैलिड नही रहती। इसके साथ ही कोर्ट ने मैनेजिंग डायरेक्टर के वसूली वाले ऑर्डर को कैंसिल कर दिया। यह निर्णय रिटायर कर्मियों के अधिकार की सेफ्टी पर एक अहम मैसेज देता है।